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आज हम आप लोगो को करेला की खेती की पूरी जानकारी देने वाले हैं।
Botanical name -- Momordica charanita
Family -- Cucurbitaceae
Chromosome No.-- 2n=22
बेलवर्गीय सब्जियों में करेला का सबसे प्रमुख स्थान है। करेला की खेती विश्व में उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में की जाती है। करेला भारत के लगभग सभी प्रांतों में इसकी खेती की जाती है। जैसे महाराष्ट्र,केरला,कर्नाटक और तमिलनाडु इसकी उत्पादन के प्रमुख राज्य हैं। Bitter Gourd उच्च पोषक तत्वों और औषधि गुणों से युक्त होने के कारण इस सब्जी का बहुत ज्यादा महत्व है। करेला में मोमोरसिडिन नामक रसायन पाया जाता है।जिसके कारण करेला का स्वाद कडवा होता है। इस रसायन की उपस्थिति के कारण मधुमेह नामक रोग के उपचार मे इसका उपयोग प्रमुख मात्रा में किया जाता है। रक्त विकार तथा पीलिया आदि रोगों में इसकी सब्जी का सेवन बहुत ही लाभदायक होता है।
Origin-- करेले का जन्म स्थान अफ्रीका एवं चीन माना जाता है। भारत में इसकी जंगली जातियां आज भी उगाई जाती है।
Climate -- करेले की फसल खरीप तथा जायद ऋतु में उगाई जाती है। अत: करेले के लिए गर्म तथा आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। पाले से इसकी फसल को भारी हानी होती है।
Land and its preparation-- करेला की खेती लगभग सभी प्रकार की मृदा में की जा सकती है। परंतु बलुई दोमट भूमि जिसमें जल निकास की उचित व्यवस्था हो तथा भूमि का पीएच मान 6-7 के बीच सर्वोत्तम रहता है।
खेत की तैयारी के लिए पहली जुताई मिट्टी पलट हल से करके 3-4 जुताई देसी हल या कल्टीवेटर से करके पाटा लगा दिया जाता है। जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाए। खेत तैयार करने के बाद क्यारी तथा नालियां तैयार कर ली जाती हैं।
Advanced varieties of bitter gourd--
Pusa Shankar-1-- इस किस्म के पौधे बीज बोने के 50 से 55 दिन बाद फल देने प्रारंभ हो जाते हैं। पूसा विशेष से इसको ऊपज 40% अधिक होती है। इसकी औसत उपज 220 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। देश के उत्तरी मैदानी भागों में व्यावसायिक खेती के लिए किस्म उपयुक्त होती है।
Arka green-- यह कम फैलने वाली उन्नत किस्म है। जो कि गर्मी और बरसात दोनों ही मौसमों में अच्छी पैदावार देती है। इसके फल मध्यम आकार के हरे रंग तथा कम बीज वाले होते हैं।
Kalyanpur Perennials-- यह किस्म वर्षभर फल देने वाली किस्म है। फल हरे और 20-25 सेमी॰ लंबे होते हैं। यह किस्म सब्जी अनुसंधान केंद्र कल्याणपुर से विकसित की गई है।
Sowing Time --
(1) मैदानी क्षेत्रों में
वर्षा ऋतु की फसल ---- जून-जुलाई
जायद की फसल ----- फरवरी-मार्च
(2) पहाड़ी क्षेत्रों में ------ मार्च से जून तक
Seed rate -- वर्षा ऋतु में सीधे खेत मे बोने के लिए 5 से 6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा जायद की फसल के लिए 6 से 7 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर एक स्थान पर बीज 2.5 से 5 सेमी॰ की गहराई पर बोने चाहिए।
Manure and fertilizers -- करेले की फसल में 200 से 250 क्विंटल गोबर की साड़ी भी खाद को बीज बोने से 1 महीने पहले खेत में अच्छी तरह से मिला दें। इसके अतिरिक्त सामान्य रूप से 60 किलोग्राम नत्रजन 30 किलोग्राम फास्फोरस तथा 30 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देनी चाहिए। फास्फोरस पोटाश की पूरी मात्रा,नत्रजन की आधी मात्रा बोते समय तथा नत्रजन की बची हुई आधी मात्रा बोलने के 1-1.5 महीने बाद जड़ के पास टॉपड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए। जैव उर्वरक के रूप में एजोस्पाइरिलम और फास्फोरस घुलनशील बैक्टीरिया का उपयोग करना चाहिए। जिससे फसल की गुणवत्ता तथा उपज दोनों में वृद्धि होती है।
Irrigation and Drainage
करेला की सिंचाई , जलवायु , भूमि की किस्म उगाने का समय आदि पर निर्भर करती है। खरीफ की फसल की तुलना में जायद की फसल में अधिक सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। खरीफ की फसल में वर्षा न होने पर आवश्यकतानुसार सिचाई करनी चाहिए। जायद की फसल में प्रारम्भिक दिनों में लगभग 10 दिन के अंतर पर और बाद में तापक्रम बढ़ने पर 6-7 दिन के अन्तर पर सिंचाई करनी चाहिए।
वर्षा ऋतु वाली फसल में जल निकास का उचित प्रबन्ध होना चाहिए , क्योंकि खेत में वर्षा का फालतू पानी इकट्ठा हो जाने पर पौधे पीले पड़ जाते हैं और बाद में मर जाते हैं।
Weed control
करेले लताओं के फैलने से पूर्व एक या दो बार निराई - गुड़ाई करनी चाहिए। क्योकि लताओं के फैलने के उपरान्त व खरपतवारों को पनपने नहीं देती है। रासायनिक विधि से खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए एलाक्लोर या ब्यूटाक्लोर की 2 किलोग्राम सक्रिय अवय के अंकुरण से पूर्व छिड़काव करने से खरपतवार नहीं अंकुरित होते ।
Disease Control
Powder Millew--यह रोग ऐरीसाइफी सिकोरेसिएरम नामक फफूंदी के द्वारा होता है। इस रोग के फलस्वरूप पत्तियों पर सफेद व पीले रंग का चूर्ण जैसा पदार्थ इकट्ठा हो जाता है। और बाद में बादामी रंग बदलकर पत्तियाँ समाप्त हो जाता है।
Control— इस रोग के नियंत्रण के लिए 0 . 3 प्रतिशत केराथेन का साप्ताहिक छिड़काव के चाहिए।
Insect Control
Cutworm --- इस कीट की सुंडी रात में निकलती हैं जो कोमल तनो को जमीन की सतह से काट देती हैं।
Control--इन कीटों से बचाव के लिए अन्तिम जुताई के समय हैप्टाक्लोर 5% के धूल को 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में अच्छी तरह से मिला दें।
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